बीजिंग. चीन के सरकारी मीडिया ने कहा है कि यूपी में मोदी की पार्टी को मिली जबर्दस्ती जीत से उनका 2019 में फिर सरकार में आना और पीएम बनना तय है। उनकी चुनावी जीत बेशक भारत की तरक्की के लिए अच्छी खबर है, लेकिन बाकियों के लिए नहीं। मोदी की जीत के ये मायने भी हैं कि दूसरे देशों के लिए उनके साथ किसी भी तरह का समझौता करना मुश्किल हो जाएगा। ग्लोबल टाइम्स ने मोदी की तारीफ भी की...
- चीन के सरकारी अखबार ग्लोबल टाइम्स के एक ओपन एडिटोरियल (op-ed) में लिखा है, ''नरेंद्र मोदी की अगुआई में बीजेपी ने हाल ही में उत्तर प्रदेश चुनाव में जबर्दस्त जीत हासिल की है। यह देश का सबसे ज्यादा आबादी वाला राज्य है। इसके साथ ही देश के कुछ और राज्यों में भी उन्हें पब्लिक का जोरदार सपोर्ट मिला है।''
- ''इससे न सिर्फ मोदी की 2019 के चुनावों में जीतने की उम्मीद बढ़ी है, बल्कि कुछ लोगों का अनुमान है वो दूसरे टर्म के लिए भी सेट हो चुके हैं। उम्मीद यह भी जताई जा रही है कि उनके रहते भारत-चीन के बीच बॉर्डर विवाद सुलझ सकता है।''
मोदी का जीतना भारत के लिए अच्छी खबर, चीन के लिए नहीं
- ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ''अगर मोदी अगला लोकसभा चुनाव जीत जाते हैं तो भारत का मौजूदा कड़ा रुख और सख्त बर्ताव जारी रहेगा। मोदी की जीत भारत के अपने डेवलपमेंट के लिए बेशक अच्छी खबर होगी। लेकिन बाकियों के लिए नहीं। उनकी जीत के ये मायने भी हैं कि दूसरे देशों के लिए उनके साथ किसी भी तरह का समझौता करना मुश्किल हो जाएगा।''
- ''बीजिंग और नई दिल्ली के बीच बॉर्डर के मसले को देखें तो अब तक इसका हल निकलने की उम्मीद नजर नहीं आई है। मोदी खुद एक बार भारत-चीन बॉर्डर पर देश के सबसे बड़े त्योहार दीपावली काे सेलिब्रेट कर अपना सख्त रुख जाहिर कर चुके हैं।''
- ग्लोबल टाइम्स ने लिखा, ''अगर मोदी अगला लोकसभा चुनाव जीत जाते हैं तो भारत का मौजूदा कड़ा रुख और सख्त बर्ताव जारी रहेगा। मोदी की जीत भारत के अपने डेवलपमेंट के लिए बेशक अच्छी खबर होगी। लेकिन बाकियों के लिए नहीं। उनकी जीत के ये मायने भी हैं कि दूसरे देशों के लिए उनके साथ किसी भी तरह का समझौता करना मुश्किल हो जाएगा।''
- ''बीजिंग और नई दिल्ली के बीच बॉर्डर के मसले को देखें तो अब तक इसका हल निकलने की उम्मीद नजर नहीं आई है। मोदी खुद एक बार भारत-चीन बॉर्डर पर देश के सबसे बड़े त्योहार दीपावली काे सेलिब्रेट कर अपना सख्त रुख जाहिर कर चुके हैं।''
मैन ऑफ एक्शन हैं मोदी
- ''जमीनी स्तर पर मोदी भले ही ज्यादा लचीले नजर ना आएं लेकिन उनके जैसे हार्डलाइनर्स में ये ताकत होती है कि वे अगर एक बार मन बना लें तो फैसलों को अमल में लाने की बेहतरीन काबिलियत के बूते वे किसी भी बात के लिए राजी हो सकते हैं।''
- ''मोदी की चुनावी जीत के बाद चीन को यह मौका मिला है कि वह इस बारे में और सोचे कि एक हार्ड लाइन सरकार के साथ अहम मसलों पर कैसे कामयाबी मिल सकती है। मोदी के कुछ कामों ने भले ही अच्छे नतीजे नहीं दिए हों लेकिन उन्होंने साबित कर दिया है कि वे मैन ऑफ एक्शन हैं। वे सिर्फ नारेबाजी करने वाले नेता नहीं हैं।''
- ''जमीनी स्तर पर मोदी भले ही ज्यादा लचीले नजर ना आएं लेकिन उनके जैसे हार्डलाइनर्स में ये ताकत होती है कि वे अगर एक बार मन बना लें तो फैसलों को अमल में लाने की बेहतरीन काबिलियत के बूते वे किसी भी बात के लिए राजी हो सकते हैं।''
- ''मोदी की चुनावी जीत के बाद चीन को यह मौका मिला है कि वह इस बारे में और सोचे कि एक हार्ड लाइन सरकार के साथ अहम मसलों पर कैसे कामयाबी मिल सकती है। मोदी के कुछ कामों ने भले ही अच्छे नतीजे नहीं दिए हों लेकिन उन्होंने साबित कर दिया है कि वे मैन ऑफ एक्शन हैं। वे सिर्फ नारेबाजी करने वाले नेता नहीं हैं।''
मोदी की मजबूती से ऑब्जर्वर्स हुए चौकस
- ओपन एडिटोरियल में आगे लिखा गया है, ''कुछ समय से भारत-चीन के रिश्तों में तल्खी देखने को मिली है। लेकिन मोदी की सत्ता पर मजबूत होती पकड़ से ऑब्जर्वर्स चौकस हो गए और वो साेचने लगे कि दोनों देशों के रिश्ते बेहतर कैसे होंगे। मोदी के कुछ कदम भले ही नतीजे देने में नाकाम रहे हों, फिर भी उन्होंने साबित किया है कि वो सिर्फ नारे लगाने वाले राजनेता नहीं हैं, बल्कि काम करने वाले शख्स हैं।''
- ''मोदी का सख्त रवैया दोनों जगह नजर आता है। घरेलू राजनीति में जैसे उन्होंने नोटबंदी की और उनके डिप्लोमैटिक लॉजिक में भी।''
- ओपन एडिटोरियल में आगे लिखा गया है, ''कुछ समय से भारत-चीन के रिश्तों में तल्खी देखने को मिली है। लेकिन मोदी की सत्ता पर मजबूत होती पकड़ से ऑब्जर्वर्स चौकस हो गए और वो साेचने लगे कि दोनों देशों के रिश्ते बेहतर कैसे होंगे। मोदी के कुछ कदम भले ही नतीजे देने में नाकाम रहे हों, फिर भी उन्होंने साबित किया है कि वो सिर्फ नारे लगाने वाले राजनेता नहीं हैं, बल्कि काम करने वाले शख्स हैं।''
- ''मोदी का सख्त रवैया दोनों जगह नजर आता है। घरेलू राजनीति में जैसे उन्होंने नोटबंदी की और उनके डिप्लोमैटिक लॉजिक में भी।''
मोदी ने इंटरनेशनल लेवल पर बदली भारत की इमेज
- ओपन एडिटोरियल कहता है, ''मोदी ने इंटरनेशनल लेवल पर भारत की किसी को अपमानित नहीं करने वाली इमेज को बदला। उन्होंने दूसरे देशों के बीच विवादों पर अपनी सोच को खुलकर उजागर करना शुरू किया। उन्होंने भारत के चीन और रूस के साथ रिश्तों को बढ़ाया। शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का मेंबर बनने के लिए अप्लाय किया।''
- ''मोदी ने अमेरिका और जापान के साथ डिफेंस कोऑपरेशन बढ़ाया है। इसके साथ ही साउथ चाइना सी मुद्दे और एशिया-पैसिफिक पर अमेरिका की स्ट्रैटजी को भी सपोर्ट किया है।''
- ओपन एडिटोरियल कहता है, ''मोदी ने इंटरनेशनल लेवल पर भारत की किसी को अपमानित नहीं करने वाली इमेज को बदला। उन्होंने दूसरे देशों के बीच विवादों पर अपनी सोच को खुलकर उजागर करना शुरू किया। उन्होंने भारत के चीन और रूस के साथ रिश्तों को बढ़ाया। शंघाई को-ऑपरेशन ऑर्गेनाइजेशन का मेंबर बनने के लिए अप्लाय किया।''
- ''मोदी ने अमेरिका और जापान के साथ डिफेंस कोऑपरेशन बढ़ाया है। इसके साथ ही साउथ चाइना सी मुद्दे और एशिया-पैसिफिक पर अमेरिका की स्ट्रैटजी को भी सपोर्ट किया है।''
भारत-चीन के बीच क्या है सीमा विवाद
- 1914 में अंग्रेजों के राज में तिब्बत के साथ शिमला समझौता किया गया था, जिसमें मैकमोहन लाइन को दोनों क्षेत्रों (भारत-तिब्बत) के बीच बॉर्डर माना गया था। लेकिन चीन सरकार इसे नहीं मानती।
- दोनों देशों के बीच 4057 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए 19 बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन यह बेनतीजा रही है।
- चीन अक्सई चिन को भी अपना इलाका बताता है, जबकि भारत कहता है कि चीन ने 1962 की जंग में उसके इस हिस्से पर कब्जा कर लिया था। यह इलाका विवादित है।
- चीन अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताता रहा है। वह इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है।
- 1914 में अंग्रेजों के राज में तिब्बत के साथ शिमला समझौता किया गया था, जिसमें मैकमोहन लाइन को दोनों क्षेत्रों (भारत-तिब्बत) के बीच बॉर्डर माना गया था। लेकिन चीन सरकार इसे नहीं मानती।
- दोनों देशों के बीच 4057 किलोमीटर लंबी लाइन ऑफ एक्चुअल कंट्रोल (LAC) से जुड़े विवादों को सुलझाने के लिए 19 बार बातचीत हो चुकी है, लेकिन यह बेनतीजा रही है।
- चीन अक्सई चिन को भी अपना इलाका बताता है, जबकि भारत कहता है कि चीन ने 1962 की जंग में उसके इस हिस्से पर कब्जा कर लिया था। यह इलाका विवादित है।
- चीन अरुणाचल प्रदेश को भी अपना हिस्सा बताता रहा है। वह इसे दक्षिणी तिब्बत कहता है।
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