
अहमदाबाद. यूपी असेंबली इलेक्शन में मिले भारी बहुमत के बाद अब बीजेपी को पसंद का राष्ट्रपति मिलना तय है। इसके लिए लालकृष्ण आडवाणी का नाम सामने आया है। इस बारे में चुनाव नतीजे आने से पहले 8 मार्च को सोमनाथ में एक मीटिंग में चर्चा हुई थी, जिसमें नरेंद्र मोदी, अमित शाह समेत खुद आडवाणी भी मौजूद थे। मोदी ने मीटिंग में यह संकेत दिया था कि उनकी तरफ से यह आडवाणी को गुरुदक्षिणा होगी। नतीजों के बाद अब आडवाणी का नाम फाइनल माना जा रहा है। सोमनाथ में हुई थी खास बैठक…
-सोमनाथ में हुई उस खास बैठक में मोदी, शाह, आडवाणी के अलावा केशुभाई पटेल भी मौजूद थे। उसी दौरान मोदी ने यह संकेत दिया था कि अगर उत्तर प्रदेश के चुनाव नतीजे बीजेपी के मनमुताबिक हुए, तो वे अपने गुरु आडवाणी को राष्ट्रपति पद पर देखना चाहेंगे।
- बता दें कि इसी साल जुलाई में राष्ट्रपति चुनाव होने वाला है।
सोमनाथ यात्रा से शुरू हुआ था मोदी का नेशनल कॅरियर
- आडवाणी और मोदी की सोमनाथ में हुई मुलाकात कई मायनों में अहम है। 1990 में आडवाणी ने सोमनाथ से अयोध्या की यात्रा शुरू की थी, तब उन्होंने अपने सारथी के रूप में मोदी को प्रोजेक्ट किया था।
- यहीं से मोदी की नेशनल पॉलिटिक्स में एंट्री हुई थी। मोदी को गुजरात का सीएम बनवाने में भी आडवाणी का अहम रोल था। 2002 के गुजरात दंगों को लेकर मोदी से जब अटल बिहारी वाजपेयी नाराज हुए थे, तो उस वक्त भी आडवाणी ने मोदी का बचाव किया था।
यूपी के चुनाव नतीजे ने बदला मन
- 2014 के लोकसभा चुनाव के वक्त जब मोदी को पीएम के रूप में प्रोजेक्ट किया गया, तब आडवाणी ने ही विरोध शुरू किया था। इसके बाद भी मोदी पीएम बन गए। तभी से आडवाणी ने मौन साध लिया। माना गया कि दोनों के बीच उसी के बाद से एक अनडिक्लेयर्ड कोल्ड वार शुरू हो गई।
- लेकिन यूपी समेत 5 राज्यों के चुनावी नतीजों के बाद आडवाणी ने सुलह की पॉलिसी को अपना लिया।
यह कैसा संयोग?
- 1990 में आडवाणी ने सोमनाथ की रथयात्रा शुरू की थी, तब मोदी 3 दिन पहले ही सोमनाथ पहुंच गए थे। उस वक्त वे आडवाणी के सारथी के रोल में थे। पर अब वक्त बदल गया है। 8 मार्च को मोदी सोमनाथ पहुंचे, उससे पहले ही 7 मार्च को आडवाणी सोमनाथ पहुंच चुके थे।



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